

प्रशासनिक लापरवाही और भुगतान संकट से डॉक्टरों
“वेतन गड़बड़ी ने बनाया नारायणपुर को डॉक्टरों का ‘नो गो ज़ोन’”
प्रशासनिक लापरवाही और भुगतान संकट से डॉक्टरों का पलायन, आदिवासी जनता हुई बेहाल
जिला नारायणपुर
छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर इन दिनों गंभीर स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। लगातार वेतन वितरण की गड़बड़ी, प्रशासनिक उदासीनता और भुगतान में लापरवाही के कारण यहां एक के बाद एक विशेषज्ञ डॉक्टर नौकरी छोड़ रहे हैं।
पिछले एक वर्ष में ही चार विशेषज्ञ डॉक्टरों — डॉ. सुमन गंजीर (मेडिसिन), डॉ. सुधांशु गुप्ता (पैथोलॉजी), डॉ. एल.एन. वर्मा (नेत्र रोग) और डॉ. अरविंद वांकर (स्त्री रोग) — ने इस्तीफ़ा देकर जिला अस्पताल को अलविदा कह दिया है।
इस्तीफों की यह श्रृंखला तब शुरू हुई जब डॉ. अरविंद वांकर को महीनों तक पूरा वेतन नहीं मिला। आदिवासी गर्भवती महिलाओं के लिए देवदूत माने जाने वाले डॉ. वांकर के जाने के बाद प्रसव सेवाएं बुरी तरह ठप हो गई हैं।
अब महिलाएं असिसी अस्पताल या जगदलपुर मेडिकल कॉलेज का रुख करने को मजबूर हैं, जिससे आर्थिक बोझ और स्वास्थ्य जोखिम दोनों बढ़ गए हैं।
13 सितम्बर 2025 को राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा चार नए विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति के आदेश जारी हुए —
डॉ. आकाश कौशिक (मेडिसिन), डॉ. सोनाली देबनाथ (स्त्री रोग), डॉ. यामिनी तुलसानी (नेत्र रोग) और डॉ. शिशुपाल (ईएनटी) —
लेकिन नारायणपुर का “भुगतान विवादित इतिहास” देखकर उन्होंने अब तक जॉइन नहीं किया।
डॉक्टरों का कहना है कि “नारायणपुर में काम करने का मतलब है महीनों बिना वेतन काम करना”।
स्थिति इतनी गंभीर है कि कुछ समय पूर्व डॉक्टरों ने नक्सलियों के पोस्टमार्टम करने से भी इंकार कर दिया था क्योंकि सीआरएमसी (नक्सल प्रोत्साहन भत्ता) का भुगतान पिछले 9 महीनों से लंबित है।
राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने कलेक्टर प्रतिष्ठा मामगाईं से कई बार शिकायत की, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
आने वाले महीनों में कई चिकित्साधिकारी अपनी सेवा अवधि पूरी करने वाले हैं — जिससे डॉक्टरों की संख्या में और भी गिरावट आएगी।
नारायणपुर की यह स्थिति बताती है कि जब समर्पण का सम्मान न मिले, तो व्यवस्था बीमार हो जाती है।
आज नारायणपुर के अस्पताल में सिर्फ मरीज़ नहीं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था खुद आईसीयू में है।




