कौन थे आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी वीर बिरसा मुंडा ?
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वीर बिरसा मुंडा 15 नवम्बर 1875 – 9 जून 1900 एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान रूप में मानते हैं और ‘धरती आबा’ के नाम से भी जाना जाता है।
वीर बिरसा मुंडा सहित पूरे आदिवासी समाज को संघर्ष चेतना के एक सूत्र में बांधने का अभियान चलता रहा। 1899 के अंत में डोम्बारी पहाड़ी की बैठक में ही अंग्रेज हुक्मरानों, ईसाई मिशनरियों और जमींदारों के खिलाफ संघर्ष की नयी रणनीति बनी। बिरसा ने हथियार उठाने की अनुमति दे दी। इसके साथ शुरू हुआ- ‘उलगुलान’ यानी महासंग्राम।
विद्रोह में बिरसा की भागीदारी और क्रांतिकारी अन्त
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये।
बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।