जानिए भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ की खोज किसने की थी, दिलचस्प है इसके बनने की कहानी
भारत का ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ अशोक स्तंभ (Ashoka Stambh) है. सम्राट अशोक के शासन काल में बने ‘चार सिंहों’ को दिखाने वाला ये स्तंभ आज भारत की पहचान बन चुका है. भारतीय करेंसी से लेकर सरकारी संस्थाओं, भारतीय सेना, भारतीय पासपोर्ट और सरकारी अधिकारियों की गाड़ियों समेत कई जगहों पर ‘अशोक स्तंभ’ नज़र आता है. आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं कि आख़िर कैसे ये देश का ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ बना, इसे किसने ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ बनाने का सुझाव दिया था और इसका डिज़ाइन किसने तैयार किया था I
Pillars of Ashoka
इतिहासकारों के मुताबिक़, इस स्तंभ को सम्राट अशोक ने 280 ईसा पूर्व बनवाया था. इसे वाराणसी के ‘सारनाथ संग्रहालय’ में रखा गया है. 26 जनवरी, 1950 को इसे भारतीय गणतंत्र में अपनाया गया था. आज ये प्रतीक भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का अहम हिस्सा बन चुका है. सभी भारतीय मुद्राओं, सरकारी काग़ज़ों, भारतीय पासपोर्ट पर भी ये प्रमुखता से अंकित होता है. हालांकि, आधिकारिक पत्राचार के लिए किसी व्यक्ति या निजी संगठन को इस प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति नहीं है.
किसने खोजा था अशोक स्तंभ
सन 1905 में यूपी के सारनाथ में हुई खुदाई में जर्मनी के सिविल इंजीनियर फ़्रेडरिक ऑस्कर ओएर्टेल ने ‘अशोक स्तंभ’ खोजा था. फ़्रेडरिक को भारत के इतिहास और पुरातत्व में काफी रुचि थी. बतौर सिविल इंजीनियर फ़्रेडरिक ऑस्कर ने 1900 के आसपास सारनाथ में खुदाई शुरू की थी. दरअसल उन्होंने इस एरिया की खुदाई चीनी यात्रियों की किताबें पढ़ने के बाद शुरू की थी, जो मध्यकाल के शुरू में सारनाथ के आसपास आए थे.
आख़िरकार 5 साल बाद सन 1905 में फ़्रेडरिक ऑस्कर को ख़ुदाई में 7 फ़ुट की ऊंचाई का अशोक स्तंभ (Ashoka Stambh) मिला. हज़ारों सालों से ज़मीन के अंदर होने की वजह से ये ख़राब हो गया था और टूटफूट भी हो चुका था. ये तीन हिस्से में टूटा हुआ मिला. लेकिन अच्छी बात ये थी अशोक स्तंभ का शेर वाला हिस्सा सही सलामत था और साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था. स्तंभ पर जिस तरह से शेर को बेहद बारीकी से उकेरा गया था, वो तो कला का नायाब नमूना था.
नेहरू ने दिया प्रस्ताव और सुझाव
भारत की आज़ादी से कुछ समय पहले 22 जुलाई, 1947 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में ‘राष्ट्रीय ध्वज’ और ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ तय करने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था. साथ ही सुझाव दिया था कि हमें राष्ट्रीय ‘प्रतीक चिन्ह’ और ‘राष्ट्रीय ध्वज’ में ‘सम्राट अशोक’ के डिज़ाइन में मौर्य सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासन काल को रखना चाहिए. आधुनिक भारत को अपने इस समृद्ध और चमकदार अतीत के आदर्शों और मूल्यों को सामने लाना चाहिए’.
संविधान सभा में नेहरू ने कहा कि, ‘चूंकि मैने सम्राट अशोक का ज़िक्र किया है तो ये बताना चाहूंगा कि सम्राट अशोक का काल भारतीय इतिहास में ऐसा दौर था जिसे ध्यान रखना चाहिए, जिसमें हमने अंतरराष्ट्रीय तौर पर छाप छोड़ी. ये केवल एक राष्ट्रीय दौर नहीं था बल्कि ऐसा समय था, जबकि हमने भारतीय राजदूतों को दूर-दूर के देशों में भेजा और वो साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं, बल्कि शांति, संस्कृति और सद्भाव के प्रतीक बनकर गए हैं’.
‘सम्राट अशोक’ के ये 4 शेरों का मतलब
सारनाथ में मौजूद अशोक स्तंभ (Ashoka Stambh) की ऊंचाई क़रीब 7 फ़ीट है, उसमें दहाड़ते हुए एक जैसे शेर चारों दिशाओं में स्तंभ के ऊपर बैठे हैं. ये चारों ‘ताक़त’, ‘साहस’, ‘गर्व’ और ‘आत्मविश्वास’ के प्रतीक हैं. दरअसल, मौर्य शासन के दौरान ये चारों शेर चक्रवर्ती सम्राट अशोक की ताक़त को दिखाते थे. लेकिन जब ‘अशोक स्तंभ’ को भारत का ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ बनाया गया तो इसके ज़रिए ‘सामाजिक न्याय’ और ‘बराबरी का संदेश’ दिया गया.